डोपिंग क्या है? और खेलों से क्या है इसका संबंध?


साल 1920 में सबसे पहले डोपिंग के अंतर्गत खेलों में कुछ दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया था। रियो में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों की शुरुआत से ही दुनियाभर में डोपिंग चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा रूस के खिलाड़ियों की डोपिंग में संलिप्तता को लेकर हुई और गहन बहस के बाद रूस के खिलाड़ियों को ओलंपिक में खेलने की इजाजत तो दे दी गई लेकिन उन पर सवाल अभी भी तल्ख हैं। साथ ही भारत के पहलवान नरसिंह यादव भी पिछले दिनों डोपिंग के कारण चर्चा में रहे थे और दुबारा हुई जांच के बाद ही उनका ओलंपिक जाना तय हो पाया। इस बीच एक सवाल मुखर होता है कि आखिर डोपिंग क्या है? यह कितने प्रकार का होता है और इससे निपटने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं।
1. क्या है डोपिंग?:
डोपिंग का मतलब है कि खिलाड़ियों द्वारा उन पदार्थों का सेवन करना जो उनकी शारीरिक क्षमता बढ़ाने में मदद करें। इससे वह अपनी क्षमता से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं। डोपिंग के अंतर्गत 5 प्रकार के ड्रग्स को प्रतिबंधित किया गया है। इनमें सबसे सामान्य स्टिमुलैंट्स और हॉर्मोन्स हैं। इनका सेवन करने से व्यक्ति के शरीर में कई साइड इफेक्ट के भी खतरे होते हैं। इसलिए इन्हें खेल शासी निकायों द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यूके डोपिंग एजेंसी से मुताबिक इन पदार्थों को तब ही प्रतिबंधित किया जाता है जब ये तीन मुख्य मानदंडों में से दो में शामिल हों। ये मानदंड हैं-
अ. ड्रग्स अगर खिलाड़ी का प्रदर्शन बढ़ाता हो।
ब. इससे खिलाड़ी का स्वास्थ्य बिगड़ने का खतरा हो।
स. या खेल की गरिमा का उल्लंघन करता हो।
2. कितने प्रकार के प्रतिबंधित ड्रग्स वर्तमान में इस्तेमाल किए जा रहे हैं?:
खिलाड़ियों के द्वारा सबसे सामान्य रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ एंड्रोजेनिक एजेंट्स जैसे एनाबोलिक स्टेरोइड्स हैं। इसके सेवन से खिलाड़ी खूब मेहनत करके ट्रेनिंग कर पाता है। अपनी चोट से जल्दी उबर पाता है और जल्दी ही अपने शरीर को सुडौल बना लेता है। लेकिन इसके कारण किडनी में क्षति होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। साथ ही खिलाड़ी आक्रामक हो जाता है। अन्य दुष्प्रभाव हैं जैसे खिलाड़ी के लगातार बाल झड़ना और उसका स्पर्म काउंट कम हो जाना। एनाबोलिक स्टेरोइड्स का या तो टेबलेट के रूप में सेवन किया जाता है या इंजेक्शन को मांसपेशियों में लगाकर।
इसके बाद नाम आता है स्टीमुलेंट्स का। इसके सेवन से खिलाड़ी ज्यादा चौंकन्ना हो जाता है और दिल की धड़कने व खून के बहाव के तेज होने से थकान कम हो जाती है। यह एक बहुत खतरनाक ड्रग है जिसके सेवन से एथलीट को दिल का दौरा भी पड़ सकता है।
तीसरे बैन ड्रग का नाम है डाइयूरेटिक्स और मास्किंग एजेंट्स। इस ड्रग का इस्तेमाल खिलाड़ी शरीर से तरल पदार्थ को कम करने के लिए करते हैं ताकि पहले इस्तेमाल किए गए ड्रग के इस्तेमाल को छिपाया जा सके। इस ड्रग का इस्तेमाल खिलाड़ी बॉक्सिंग या घुड़सवारी में करते हैं।
नारकोटिक अनाल्जेसिक्स और कैन्नाबिनोइड्सका इस्तेमाल खिलाड़ी थकान व चोट से होने वाले दर्द से निजात पाने के लिए करते हैं। लेकिन इसके इस्तेमाल से चोट और भी खतरनाक हो जाती है। यह भी एक नशे की लत है। मार्फीन और ऑक्सीकोडोन जैसे पदार्थों पर प्रतिबंध है लेकिन ओपिएट-डिराइव्ड पेनकिलर का इस्तेमाल करने की अनुमति है।
इसके बाद नाम आता है पेपटाइड हार्मोन्स का। इसमें कुछ पदार्थ होते हैं जैसे ईपीओ(erythropoietin)- यह विस्तृत रूप से खिलाड़ी की मजबूती, रक्त कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाता है जिससे खिलाड़ी को एनर्जी मिलती है और HGH (human growth hormone) बनते हैं और मांसपेशियां बनती हैं।
सबसे कम जाना जाने वाली ड्रग ब्लड डोपिंग है। जिसमें शरीर से खून निकाला जाता है और बाद में इंजेक्शन के सहारे शरीर में डाला जाता है ताकि ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाया जा सके। ग्लूकोकॉर्टिकॉइड्स की प्रकृति एंटी- इन्फ्लेमेटरी होती है इससे गंभीर चोट से बचने में मदद मिलती है। लेकिन यह कार्बोहाइड्रेट्स के मेटोबोलिज्म, फैट और प्रोटीन और ग्लाइकोजिन और ब्लड प्रेशर स्तर को नियंत्रण में रखता है।
बेटा ब्लॉकर्स, का इस्तेमाल भी आजकल एथलीट ड्रग के रूप में कर रहे हैं। यह एक प्रतिबंधित ड्रग है। इस दवाई का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर और दिल का दौरा रोकने के लिए किया जाता है। यह दवाई तीरंदाजी और शूटिंग में बैन है। इस दवाई के इस्तेमाल से दिल की गति कम रहती है और हाथ शूटिंग करने के दौरान हिलते नहीं हैं।
कैसे पता किया जाता है कि खिलाड़ी ने डोपिंग की है?:
खिलाड़ी के शरीर में डोपिंग की जांच के लिए एक लंबे समय से स्थापित तकनीकी मास स्पेक्ट्रोमेट्रीका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अंतर्गत खिलाड़ी के यूरिन सैंपल को आयोनाइज करने के लिए इलेक्टॉन्स से फायर किया जाता है इससे अणुओं को चार्ज्ड पदार्थ में परिवर्ति कर दिया जाता है इलेक्ट्रॉन्स को जोड़कर व हटाकर।
जितने भी पदार्थ सबमें एक सबसे अलग 'फिंगरप्रिंट' होता है। जैसा कि वैज्ञानिकों को पहले से ही कई स्टेरॉइड्स का भार पता होता है इसलिए वह तुरंत पहचान जाते हैं कि डोपिंग वाला सेंपल कौन सा है। लेकिन ये तरीका बहुत पेचीदा है। कुछ डोपिंग के बाई- प्रोडक्ट इतने छोटे होते हैं कि उनसे इतने सिग्नल ही नहीं मिलते कि उन्हें डिटेक्ट किया जा सके। ब्लड टेस्टिंग के माध्यम से ईपीओ और सिनथेटिक ऑक्सीजन कैरियर्स को जांचा जा सकता है लेकिन ब्लड ट्रांसफ्यूजन को कतई नहीं जांचा जा सकता। इस तरह से ब्लड ट्रॉसफ्यूजन को जांचने के लिए एक नया सिस्टम है जिसका नाम बायोलॉजिकल पासपोर्ट है। साल 2009 में वाडा में लाए गए पासपोर्ट से डोपिंग के प्रभाव को जांचा जा सकता है।
पिछले कुछ सालों से विभिन्न खेल निकाय खेलों में डोपिंग को जाचे जाने को लेकर जोर दे रहे हैं। कारण साफ है कि खेलों में पारदर्शिता बनी रहे।
By  Devbrat Bajpai
Cricketcountry

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